Akshar Beej Ki Hariyali (Commentary on Dr. Viveki Rai's complete writings) / अक्षर बीज की हरियाली (डॉ. विवेकी राय के समग्र लेखन की समीक्षा)
Author
: Vedprakash
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2002
ISBN
: 9VPABKHH
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: viii + 162 Pages, Append, Size : Demy i.e. 22.5 x 14 Cm.

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रचना-आलोचना के द्वन्द्व और अन्तत: उनके आंतरिक संवाद से भावयित्री प्रतिभा पुष्टï और समृद्ध होती है। जब किसी 'मूल्यांकनÓ पर 'वस्तुनिष्ठïताÓ के स्थान पर 'पूर्वग्रहÓ हावी होने लगते हैं तो फिर उसकी प्रासंगिकता संदिग्ध हो उठती है। विवेकी राय का लेखन हिन्दी समीक्षा के कुछ झंडाबरदारों के लिए आश्वस्तकारी नहीं रहा है क्योंकि श्री राय बगैर किसी वाद या गुट से जुड़े रचना-साधना में संलग्न रहे हैं। जिन समीक्षकों ने 'रचनाशीलताÓ को दृष्टिïपथ में रखकर अपनी वस्तुनिष्ठï समीक्षादृष्टिï का परिचय दिया है, वेदप्रकाश अमिताभ उनमें से एक हैं। उन्होंने इस कृति में श्री विवेकी राय क समग्र लेखन की शक्ति और सीमाओं की पहचान बहुत गहरे धँसकर की है। सतही निष्कर्षों और चालू कथनों से बचते हुए 'रचनाकारÓ के समग्र रचना-व्यक्तित्व को जानने-बूझने का एक सार्थक प्रयास है प्रस्तुत समीक्षात्मक कृति। विषय-क्रम : अनुशीलन-खण्ïड : १. रचना-संसार, २. काव्ïय-रचना, ३. उपन्ïयास-कर्म, ४. उपन्ïयास : परिवेश-बोध, ५. कहानी-यात्रा, ६. ललित निबन्ध, ७. कथालोचन, ८. व्ïयंग्ïय-साहित्ïय, ९. भोजपुरी रचनाएँ, १०. सम्पादन-कर्म, समीक्षा-खण्ïड : ११. मरणोन्ïमुख गाँïव को जिन्ïदा रखने का प्रण : 'लोकऋणÓ, १२. रिपोर्ताज लेखन के सामथ्ïर्य का प्रमाण : 'जुलूस रुका हैÓ, १३. गाँïव की माटी में फूटती गुलाब गन्ध : 'गँवई गन्ध गुलाबÓ, १४. वैचारिक प्रौढ़ता और कलात्ïमक मँजाव का सुबूत : 'आम रास्ïता नहीं हैÓ, १५. 'चित्रकूट के घाट परÓ : प्रौढ़ कथा-यात्रा का नया पड़ाव, १६. देशव्ïयापी नैतिक अवमूल्ïयन, विचार-संक्रमण और जनजागरण की प्रतीक गाथा : 'समर शेष हैÓ, १७. 'आस्था और चिन्ïतनÓ : दृढ़ आस्था और उर्वर चिन्तन की संश्ïिलष्ïटता, १८. 'सोनामाटीÓ : कृषक जीवन की विडम्बना के आस-पास, १९. भारतीय वीरों के शौर्य का औपन्ïयासिक आकल्ïपन : 'मंगल भवनÓ, २०. 'यह जो है गायत्रीÓ : अंधकार पर प्रकाश की विजयश्री, २१. किसान-चेतना से पुष्ïट और सम्पन्ïन निबन्ध रचनायें : 'जगत तपोवन सो कियोÓ, २२. 'कल्ïपना और हिन्ïदी साहित्ïयÓ : सर्वेक्षण की गंभीरता और सार्थकता, २३. 'अमंगलहारीÓ : मानवीय मूल्ïयों को समॢपत आख्ïयान, २४. 'फिर बैतलवा डाल परÓ : एक पुनॢवचार, २५. स्ïमृति के जलतरंग पर गूँजता शोकगीत : 'देहरी के पारÓ, परिशिष्ïट।