Swatantryottar Hindi Kavya Aur Samajik Jiwan Ki Abhivyakti / स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी काव्य और सामाजिक जीवन की अभिव्यक्ति
Author
: Chandra Bhushan Sinha
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 1985
ISBN
: 9VPSHKASJKAH
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: viii + 176 Pages, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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स्वातन्त्र्योत्तर काव्य ने अपने परिवेश को कितनी व्यंजना दी है, उसने समाज के बदलते हुए रूप, उसकी परिस्थितियाँ और उन परिस्थितियों के परिणामों को कहाँ तक परखा है, यह जानने की उत्कण्ठा ही इस प्रबन्ध की प्रेरणा है। इस प्रबन्ध में स्वातन्त्र्योत्तर काव्य की पृष्ठिभूमि और इस काव्य में अभिव्यक्त सामाजिक जीवन को समझने का प्रयत्न किया गया है। स्वतंत्रता के बाद होने वाले परिवर्तनों ने व्यक्ति, समाज, धर्म, ईश्वर, परिवार और पारिवारिक स?बन्धों को प्रभावित किया है। इसका प्रभाव राजनीतिक स्थिति पर ही नहीं, आर्थिक और सामाजिक ढाँचे पर भी पड़ा है। इस युग पर माक्र्स और फ्रायड का चिंतन भी है तथा ओस्वाल्ड स्पेंगलर की रचना 'डिक्लाइन आफ द वेस्ट' का प्रभाव भी। गीति काव्य का सौन्दर्य-बोध भी है और विसंगतियों तथा संत्रास से उत्पन्न भटकाव और विश्रृखलता भी। प्रयोग और नयापन के प्रति अनावश्यक मोह से उत्पन्न व्यंजना की जटिलता और दुर्बोध बिम्बों की भीड़ भी है तथा सपाटबयानी के प्रति अनुचित आकर्षण से उत्पन्न भद्दापन भी। सार्व और कामू के दर्शन का बोध भी है। और जीवन को सरल ढंग से जीने की कामना भी। सुदीर्घ दासता के समाप्त होने का हर्षोल्लास है तथा विश्व राजनीति के रंगमंच पर भारत की पुन: प्रतिष्ठा के स्पन्न भी हैं। आधुनिकता का प्रभाव प्रबल है। पाश्चात्य जीवन विधि को समृद्धि और विकास का प्रतीक मानने की मानसिक दासता है और पश्चिम से आनेवाली प्रत्येक मान्यता को आंख मूंदकर स्वीकार कर लेने की मनोवृत्ति है। इन सारी परिस्थितियों और उनके बीच विकसित स्वातन्त्रयोत्तर काव्य को सामाजिक सन्दर्भ में देखने का प्रयत्न इस प्रबन्ध में किया गया है।