Rashtrakavi Ramdhari Singh Dinkar Ki Rashtriya Sanchetana / राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की राष्ट्रीय संचेतना
Author
: Vedprakash Upadhyay
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2014
ISBN
: 9788189498733
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xvi + 140 Pages, Size : Demy i.e. 15 x 13 Cm.

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकरकी काव्य-प्रतिभा सर्वातिशायिनी थी।साहित्य के धरातल पर उनकी काव्य-चेतना का प्रस्फुटन प्राय: दो धाराओं केरूप में हुआ शृंगार एवं वीर रस। शृंगारिकता उनके अन्तस में पूर्व से ही विद्यमान थी जबकि राष्ट्रीयता ने उन्हें वाह्य रूप से प्रभावित किया। इस अर्थ में कहा जा सकता है कि शृंगारिक भावना उनके आकुल मन की सहज अभिव्यक्ति थी। इसके सापेक्ष उनके छन्दों में वॢणत दर्प शौर्य एवं वीरता का भाव तत्कालीन परिस्थितियों की देन रही है। परतन्त्रता की पीड़ा से मुक्ति हेतु संघर्षरत असंख्य राष्ट्रभक्तों की भावना को वह अनदेखा कैसे कर सकते थे राष्ट्रप्रेम की प्रबल जिजीविषा उनके हृदय को झकझोरती रही। वीरता के छन्द उनकी इन्हीं भावनाओं की परिणति सिद्ध हुए। वे इस सत्य को स्वीकार करने में संकोच नहीं करते कि आत्मा उनकी रसवन्ती एवं उर्वशी में रची-बसी थी। स्वाभिमान के गीत कविधर्म की पूर्ति में गाये गये। युग-स्रष्टा होने के नाते अपने युग के आग्रह को वे कैसे ठुकरा सकते थे। तत्कालीन जनमानस उनसे वीर रस के गीत सुनने का निवेदन करता था। सच है उनकी साहित्यिक पहचान एवं कीर्ति के आधार उनके राष्ट्रप्रेमपरक गीत ही हैं। इन्हीं गीतों ने उन्हें राष्ट्रकवि के रूप में विभूषित किया। समग्रत: दिनकर जी सामाजिक प्रतिबद्धता से युक्त मानवता के प्रति प्रतिश्रुत एवं विराट चेतना सम्पन्न महाकवि थे। उनकी रचनाओं में उनका अपराजित व्यक्तित्व ही प्रतिफलित हुआ है। उनकी लेखकीय ईमानदारी ही उनके साहित्य-सृजन की पहली शर्त रही है। मूलत: दिनकर जी राष्ट्रीय अस्मिता के स्वस्तिवाचक कवि थे। काल के गतिशील धरातल पर उनकी रचनाएँ सदा कालजयी बनी रहेंगी यह मेरा आत्मिक विश्वास है।