Padmasingh Sharma
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पं० पद्मसिंह शर्मा की पुस्तक 'सतसई-संहार’ ('बिहारी-सतसई’ की आलोचना) सर्वप्रथम सन् 1918 में ज्ञानमण्डल काशी से प्रकाशित हुई थी। बाद में शर्माजी ने 'बिहारी सतसई’ का 'संजीवन-भाष्य’ भी लिखा जो अधूरा रह गया। 'सतसई’ के केवल 126 दोहों का भाष्य ही शर्मा जी लिख पाये थे। प्रस्तुत पुस्तक में आलोचना एवं भाष्य एक साथ दिये गये हैं। 'सतसई’ की यों अनेक टीकाएँ लिखी गयीं लेकिन इनमें जगन्नाथ दास रत्नाकर का 'बिहारी-रत्नाकर’, लाला भगवानदीन 'दीन’ की 'बिहारी-बोधिनी’ और पद्मसिंह शर्मा के 'संजीवन-भाष्य’ का विशिष्ट महत्त्व है। इधर जापान में हिन्दी के प्रो$फेसर लक्ष्मीधर मालवीय (महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के वंशज) ने 8 वर्षों तक, सप्ताह के सातों दिन अथक परिश्रम कर 'बिहारी-सतसई’ का पाठ सम्पादन पूर्ण किया जो लगभग एक हजार पृष्ठों में, तीन खण्डों में प्रकाशित हो चुका है।