Kajari [PB] / कजरी (पेपर बैक)
Author
: Shanti Jain
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Folklore (Lok Sahitya-Bhojpuri etc.)
Publication Year
: 2014
ISBN
: 9789351460763
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xii + 132 Pages; Size : Demy i.e. 21.5 x 13.5 Cm

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स्वनामधन्य महामहोपाध्याय डॉ० पं० गोपीनाथ कविराज के स्वानुभूत अध्यात्म पथ का जो वर्णन उनकी लेखनी द्वारा यत्र-तत्र व्यक्त किया गया था, उसी का संग्रहात्मक प्रयास हिन्दीभाषा के जिज्ञासुओं की सुविधा के लिए प्रस्तुत किया गया है। मुझे बीस वर्षों तक इन महापुरुष के दर्शन का सौभाग्य इनकी कृपा तथा प्राक्तन कर्मों के फलस्वरूप मिलता रहता था। यह सत्ïसंग मैंने जिस रूप में पाया था, भले ही उस रूप में अब उपलब्ध नहीं है, तथापि उन महापुरुष का साहित्यरूपी जो कृतित्व उपलब्ध हो रहा है, वह मूत्र्तरूप धारण करके अर्थात् वाङ्मयरूप में सतत विद्यमान है। इसका पठन-चिन्तन तथा अनुशीलन भी उनका ही सत्ïसंग है। इस वाङ्मयरूप के विद्यमान रहने के कारण उन महामनीषी का अभाव भी उतना नहीं खटकता। इस रूप में उन्होंने यथार्थ जिज्ञासुओं के लिए मानो एक स?बल तथा पथप्रदीप तो छोड़ दिया है। यही उनकी यश:काया है, जो काल के कराल झंझावात में भी यथावत् विद्यमान है। महापुरुष की वाणी आपातत: क्लिष्ट तथा दुरूह प्रतीयमान होने पर भी यथार्थत: वैसी अगम नहीं होती। यह क्लिष्टता हमें अपनी हृदयहीनता तथा संस्कारों से आबद्धता के कारण अनुभूत होती है। हृदय में हृदयत्व कहाँ है? उसमें तो स्वार्थ, कुटिलता तथा मात्र अपने प्रति ममत्व भरा है। उसमें उन्मुक्तता कहाँ है? परदु:खकातरता कहाँ है? सर्वजन हित-कामना कहाँ है? ऐसे कुटिल तथा प्रस्तरवत् हृदय के रहते महापुरुष की वाणी दुरूह तो प्रतीत होगी ही। महापुरुष जो भी लिख गये हैं, वह उन्होंने लोकहितार्थ लिखा है। अपने उद्देश्य से एक शब्द भी नहीं लिखा है। उसका यथार्थ तात्पर्य समझने के लिए हमें सहृदय बनना होगा। शापित (हृदयरूपी) प्रस्तर-मूॢत्त अहल्या को प्रभु प्रेमरूपी चरणाग्र के स्पर्श से पुन: चेतनवत् बनाना होगा। तभी शास्त्रों का तथा महापुरुषों की वाणी का यथार्थ तात्पर्य ज्ञात हो सकेगा।