Hindi Ka Vaishvik Paridrishya / हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य
Author
: Vedprakash Upadhyay
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2016
ISBN
: 9789351461432
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: viii + 168Pages; Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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हिन्दी अपनी निहित विशेषताओं के कारण सम्प्रति विश्वभाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है। यह सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में दूसरे अथवा तीसरे स्थान पर पहुँच चुकी है। विश्व के प्राय: 150 देशों में हिन्दी का अध्ययन, अध्यापन एवं शोधकार्य चल रहा है। हिन्दी की अनेकानेक पुस्तकों के विभिन्न भाषाओं में हो रहे अनुवाद इसकी स्वीकार्यता के साक्ष्य हैं। हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य अत्यन्त प्रशस्त है। यह माना जा रहा है कि म्पर्क भाषा के रूप में बिना हिन्दी का आश्रय ग्रहण किये कोई भी राष्ट्र व्यापारिक दृष्टि से उन्नति नहीं कर पायेगा। हिन्दी का यह बढ़ता चरण हिन्दी-भाषियों के लिए शुभ संकेत है। मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि विश्व स्तर पर फल-फूल रही हिन्दी अपने ही देश में अवज्ञा की स्थिति में है। अतीत काल से ही हिन्दी अपने प्राप्तव्य को लेकर छटपटा रही है। राजनेताओं की दुर्बल इच्छा-शक्ति के कारण संविधान में इसे राष्ट्रभाषा का रूप प्राप्त नहीं हो पा रहा है। यद्यपि सामान्य रूप से भारतवासियों ने इसे राष्ट्रभाषा स्वीकार कर लिया है किन्तु अधिकृत रूप से इसे राष्ट्रभाषा की स्वीकृति अभी तक प्राप्त नहीं हो पायी है। स्वतन्त्रता के प्राय: 65 वर्ष बीत जाने के बाद भी भारतीय संविधान में यह राजभाषा के रूप में ही व्यवहृत हो रही है। यह शर्मनाक ही नहीं दर्दनाक भी है। अंग्रेजी अघोषित रूप से राजसिंहासन पर विराजमान है और हिन्दी उसकी सेविका बनकर झाड़ू-पोछा कर रही है। देश में हिन्दी-दिवस मनाने की औपचारिकता बढ़ती जा रही है। हिन्दी को वह प्राप्त नहीं हो पा रहा है जिसकी वह अधिकारिणी है। विपुल साहित्य, वैज्ञानिक देवनागरी लिपि, अपार शब्द-सामथ्र्य एवं सुग्राह्य होते हुए भी हिन्दी अपने ही देश में उपेक्षित है। यह एक चिन्तनीय सत्य है।