Natyashastra Mein Aangik Abhinaya / नाट्यशास्त्र में आङ्गिक अभिनय
Author
: Bhartendu Dvivedi
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Music, Dance, Natyashastra etc.
Publication Year
: 1990
ISBN
: 8185246335
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: 356 Pages; Size : Demy i.e. 22 x 14 Cm.

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नाट्यशास्त्र में आङ्गिक अभिनय (नाट्यशास्त्र में आङ्गिक अभिनय के सिद्धान्त एवं प्रमुख संस्कृत नाटकों में उनका प्रयोग) नाटक साहित्य की प्राचीनतम और अत्यन्त महत्वपूर्ण विधा है। इसमें भाव, वस्तु और शब्द भंगिमाओं के अतिरिक्त एक और तत्व है, रंगत्त्व। इसी तत्त्व के कारण नाट्य को काव्य, आख्यान आदि से श्रेष्ठ माना गया है। नाट्य की सार्थकता रंगमंच अनुष्ठान में ही है, अत: अभिनेयता नाटक का मुख्य एवं अनिवार्य धर्म है। आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र का अत्यन्त विशद, गहन एवं प्रामाणिक अनुशीलन किया है। उनके नाट्यशास्त्र में अभिनय शब्द बहुत ही व्यापक अर्थों में व्यवहृत हुआ है। इसका अर्थ इमिटेशन (अनुकरण) और जेश्चर (भावभंगी) मात्र नहीं है। बल्कि इस शब्द के अंतर्गत नाटक के प्राय: सभी तत्त्व आ जाते है। अभिनय के चारों अंगों-आंगिक, वाचिक, सात्विक और आहार्य पर बल देते हुए भरत ने आंगिक को प्रथम स्थान दिया। इसी आंगिक अभिनय का सैद्धान्तिक विवेचन और इस निकष पर प्रमुख संस्कृत नाटकों का परीक्षण इस शोध-प्रबंध में किया गया है। विदवान शोधकर्ता ने भरत के साथ ही अन्य संस्कृत आचार्यों के आंगिक अभिनय सम्बन्धों मतों-विचारों का भी समाहार अपने विवेचन में किया है। प्रसन्नता की बात है कि मौलिक चिन्तन की स्वस्थ परम्परा का अनुकरण करते हुए लेखक ने आचार्यों के मतों का स्पष्ट विश्लेषण किया है और कहीं कहीं उनकी मान्यताओं का सतर्क खण्डन भी किया है। इस ग्रन्थ की अन्य विशिष्ट उपलब्धि है-प्रमुख संस्कृत नाटकों में आंगिक-अभिनय-सिद्धान्त की व्यावहारिक परख। लेखक ने अपनी गम्भीर विवेचन-क्षमता से नाटकों से सशक्त अंशों को सामान्य अंशों से पृथक कर दिया है। निश्चय ही विद्वानों के बीच इस शोध-ग्रन्थ की और इसके लेखक की प्रतिक्षा की सम्यक् प्रतिष्ठा स्थापित होगी।