Manbodh Master Ki Dairy / मनबोध मास्टर की डायरी
Author
: Viveki Rai
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Hindi Novels / Fiction / Stories
Publication Year
: 2006
ISBN
: 818949810X
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xx + 192 Pages, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

MRP ₹ 200

Discount 20%

Offer Price ₹ 160

मनबोध मास्टर की डायरी वाराणसी के 13 सितम्बर 1958 से 27 सितम्बर 1971 तक प्रति सप्ताह प्रकाशित होने वाली ग्रामीण भारत की दिग्दर्शिका है। आंचलिक पत्रकारिता होते हुए भी सामयिकता अथवा समकालीनता से ऊपर उठकर सार्वकालिक साहित्यिक सृजन का प्रतिरूप है। फीचर, रिपोर्ताज, कहानी, ललित निबन्ध, रेखाचित्र, संस्मरण, हास्य-व्यंग्य, यात्रावृत्त आदि गद्य की अनेक सशक्त विधाएँ इनमें समाहित हैं। डायरी का शरीर होते हुए अंगीभूत कहानी, रेखाचित्र, व्यंग्य-विनोद, रिपोर्ताज, यात्रा-वर्णन अपनी पूरी अर्थवतत्ता और लालित्य के साथ विद्यमान हैं। जापानी दूतावास से सांस्कृतिक विभाग के सदस्य तामोनी मुतों ने 1 मई 1962 के पत्र में लेखक को लिखा था — आपकी यह अत्युत्कृष्ट कृति 'भारत के ग्रामीण साहित्य का प्रतीक' कही जा सकेगी। आप स्वयं ग्राम में निवास करके कृषकों के साथ देैनिक जीवन बिताते हैं। अर्थात् साहित्यकार के रूप में आपकी जड़ ग्रामीणों के जीवन में तथा उनके सुख-दु:ख में बहुत गहराई तक बढ़ी हुई है। इसी कारण आपकी कृति ग्रामीण जीवन की तथ्यपूर्ण परिस्थितियों से भरी हुई है। विवेकी राय कविता लिखते थे, किन्तु 1960 से कविता लिखना बन्द कर दिया। उनके शब्दों में ''एक प्रकार से कविता का जो मेरा संस्कार था वह छन्दबद्ध न होकर डायरी में ही समाविष्ट होने लगा, जो कवि था वह गद्यकार के रूप में डायरियों में प्रवाहित होने लगा, उसमें डायरी तो नाममात्र की ही थी, उसमें कहानी, शुद्ध कहानी भी लिखता और यात्रा-वर्णन, रिपोर्ताज, संस्मरण, सारी-सारी विधायें उस डायरी में आ जाती थीं। ढाँचा डायरी का है, शिल्प डायरी का है —कभी कोई दृश्य देखा, कोई बात हुई, कोई घटना हुई, उसका संस्मरण आ गया। कहीं रिपोर्ताज का रूप आ गया। कभी कहानी का रूप ले लिया। अपने इर्द-गिर्द गँवई जीवन को बहुत सहजता से जीते हुए मुझे विषय की कमी नहीं पड़ी।'