Bhartendu Ke Natya Shabda / भारतेन्दु के नाट्य शब्द
Author
: Poornima Satyadev
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Plays / Drama
Publication Year
: 2001
ISBN
: 8171242782
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: viii + 112 Pages, Biblio., Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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भारतेन्दुजी की नाट्यसाधना इसका संकेत करती है कि वे हिन्दी में एक सुन्दर और सुदृढ़ नाट्य-परम्परा का आरम्भ करना चाहते थे। उनके सम्मुख एक ओर तो संस्कृत की सुविचारित और सुदृढ़ नाट्य परम्परा थी और अनेक महाकवियों के नाटक थे। जिन्होंने विश्व-साहित्य में भारत को गौरव प्रदान किया था। दूसरी ओर नयी-नयी आयी हुई पश्चिम की नाट्यप्रणाली थी। काल-धर्म ने उन्हें प्रेरित किया था कि वे इन दोनों प्रणालियों से लाभ उठायें और हिन्दी नाट्य को समुचित और सुगठित रूप में प्रस्तुत करें। फलस्वरूप उन्होंने भारतीय और यूरोपीय दोनों नाट्यकलाओं का समुचित अध्ययन किया और हिन्दी में उस नाट्य-परम्परा को जन्म दिया, जो न केवल पूर्व-पश्चिम का समन्वय ही हैं, प्रत्युत उसमें नयी उद्भावना, नयी धारणा नयी चेतना और नवीन प्रयोगशीलता है। भारतेन्दुजी न केवल समन्वयकारी ही थे, वे हिन्दी नाटक के जन्मदाता भी थे। अनेक विद्वानों ने भारतेन्दु जी की नाट्य सम्बन्धी विचारणा को भरत के नाट्यशास्त्र की संज्ञा दी है। यद्यपि भरत का नाट्यशास्त्र एक विशाल ग्रन्थ है, उसके पीछे बड़ी लम्बी साधना और परम्परा प्रतीत होती है, तथापि भारतेन्दुजी के इस प्रयत्न को, सीमा और सामथ्र्य का ध्यान रखकर विद्वानों द्वारा प्रदत्त उक्त विशेषण उचित ही है।