Rahiye Apane Gavana Ji / रहिये अपने गावाँ जी
Author
: Manoj Kumar Singh
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Adhyatmik (Spiritual & Religious) Literature
Publication Year
: 2007
ISBN
: 9788171245413
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xii + 86 Pages, Plate, Biblio, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.

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'गीत-गोविन्दÓ को लेकर पूर्वी क्षेत्र में ही कविता के माध्यम से साधुता, वैराग्य और पाखण्ड-विरोधी दर्शन की स्थापना हुई। खाना-पीना, उठना-बैठना, घूमना-फिरना, जीवन और मरण के बन्धनों में रहते हुए जीने की कामना के साथ मृत्यु के अटल सत्य पर विश्वास पहली बार कविता का विषय बना। इसकी भूमि भारत का पूर्वी हिस्सा ही रही है। जहाँ देवपूजा के समानान्तर सूर्य की पूजा प्रारम्भ हुई। यह पूजा पुरी से शुरू होकर द्वारका तक जीवन को ही साधुता कहने वाले और कविता को जीवनचर्या मानने वाले सिद्धों के द्वारा पहली बार चिह्निïत होती है। आसन, ङ्क्षसहासन, गादी, पीठ के बिना जिस रचना का व्याकरण, संगीत, सुर, ताल और ऋतु तथा बेला से जुड़ा हो वह गेय पद साधु रचनाओं में 'पदÓ कहा जाता है। यह संगीतात्मकता ही उसका व्याकरण है, उसका ङ्क्षलग है, वचन है, कारक है, कारक अर्थात् क्रिया को कराने की क्षमता रखने वाला। पूरब रंग की तमाम लिखित और मौखिक परम्पराओं के साथ राग और संगीत का सीधा सम्बन्ध है। कविता, विशेष रूप से पूरब रंग की साधु-कविता सम् पूर्ण अभिव्यक्ति है। विषयानुक्रम अपना कहना लब्धि : उपलब्धि अध्याय प्रथम : धुर पूरब और पूर्वी रंग का मतलब द्वितीय : ग्रन्थ, पोथी, बानी का अभिप्राय तृतीय : राग और कविता के बारह सौ वर्ष चतुर्थ : पोथियों के विभिन्न रूप पंचम : काव्य रागों का ऋतु बेला और समयार्थ षष्ठम् : पोथी बंध का रस और अध्यात्म सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची