Kashi Ke Vidyaratna Sanyasi [PB] / काशी के विद्यारत्न संन्यासी
Author
: Baldev Upadhyaya
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Bio/Auto-Biographies - Spiritual Personalities
Publication Year
: 2022
ISBN
: 9788171246687
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: viii + 124 Pages, Biblio, Size : Demy i.e. 22 X 14

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काशीस्थ मनीषियों ने वेदान्त के प्रसार तथा प्रचार के निमित्त जो कार्य किया, वह वेदान्त के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित करने योग्य है। तथ्य तो यह है कि वेदान्त की सार्वभौम मौलिक रचनाओं के निमित्त दार्शनिक समाज काशी के विद्वानों का चिरऋणी रहेगा। इस अभिनव प्रयास में विरक्त संन्यासियों तथा अनुरक्त गृहस्थों, दोनों का सम्मिलित योगदान सदैव श्लाघनीय तथा स्मरणीय रहेगा। विद्वान् संन्यासियों के रचनाकलाप का अनुशीलन करने से एक विशिष्ट तथ्य की अभिव्यक्ति होती है और वह है ज्ञानमार्गी ग्रन्थों के प्रणयन के साथ ही भक्तिमार्गी ग्रन्थों का निर्माण। आदि शङ्कराचार्य ने काशी को अपनी कर्मस्थली बनाकर उसे गौरव ही प्रदान नहीं किया, अपितु उस प्राचीन परम्परा का भी अनुसरण किया जो विद्वानों से अपने सिद्धान्तों के परीक्षण तथा समीक्षण के लिए काशी में आने के लिए आग्रह करती थी। काशीस्थ विद्वानों का अद्वैत के प्रति दृढ़ आग्रह और अद्वैतविषयक ग्रन्थों के प्रणयन के प्रति नैसर्गिक निष्ठा बोधगम्य है। यहाँ विशिष्ट वेदान्त-तत्त्वज्ञ संन्यासियोंं का ही संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है—श्री गौड़ स्वामी, श्री तैलंग स्वामी, स्वामी भास्करानन्द सरस्वती, स्वामी मधुसूदन सरस्वती, श्री देवतीर्थ स्वामी, स्वामी महादेवाश्रम, स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वती, स्वामी ज्ञानानन्द, स्वामी करपात्रीजी, दतिया के स्वामीजी, स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती। 'अद्वैतसिद्धि' के प्रणेता श्री मधुसूदन सरस्वती एक साथ ही प्रौढ़ दार्शनिक तथा सहृदय भक्त दोनों थे। 'अद्वैतसिद्धि' जैसे प्रमेयबहुल तार्किक ग्रन्थ के निर्माण का श्रेय जहाँ उन्हें प्राप्त है, वहीं 'भक्तिरसायन' जैसे भक्तिरस के प्रतिष्ठापक ग्रन्थ की रचना का गौरव भी उन्हें उपलब्ध है। चतुर्दशशती के वेदान्तज्ञ संन्यासियों में स्वामी ज्ञानानन्द का विशिष्ट स्थान था। आज भी करपात्रीजी महाराज की, जहाँ कट्टïर अद्वैत के प्रतिपादन में तार्किक बुद्धि का विलास मिलता है, वहीं 'रासपञ्चाध्यायी' के विशद अनुशीलन में तथा 'भक्तिरसार्णव' जैसे भक्तिरस के संस्थापक ग्रन्थ के निर्माण में उनका भक्तिरसाप्लुत स्निग्ध हृदय भी अभिव्यक्त होता है। काशी के अद्वैती संन्यासियों की यह परमपरा आज भी जागरूक है।