Ritikavya Sangraha Aur Kavyanga-Parichaya (Bihari, Ghananand, Bhushan) / रीतिकाव्य संग्रह और काव्यांग-परिचय (बिहारी, घनानन्द, भूषण)
Author
: Hindi Department_BHU
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Hindi Poetical Works / Ghazal etc.
Publication Year
: 2019
ISBN
: 9788171247592
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxii + 100 Pages, Size : Demy i.e. 21.5 x 13.5 Cm

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Ritikavya Sangraha Aura Kavyanga-Parichaya (Bihari, Ghananand, Bhushan) Edited by Hindi Deptt. Banaras Hindu University Varanasi

दो शब्द हिन्दी साहित्य का रीतिकाल कविता के कलात्मक उत्कर्ष उत्कर्ष का काल था। इस काल में मुख्य रूप से सामंती अभिरुचि का पोषण करने वाली कविताएँ लिखी गयीं, इसलिए कवि-कर्म का उद्देश्य किसी महान आदर्श की स्थापना न होकर राजाओं-सामंतों का मनोरंजन करना ही था। कवियोंं का ध्यान कविता की अन्तर्वस्तु की गम्भीरता के बजाय रूप को निखारने-चमकाने और अलंकृत करने पर अधिक था। इसके बावजूद चूँकि हर युग की रचना में तत्कालीन युग जाने-अनजाने झलक ही जाता है, अत: रीतिकाल की कविताओं में भी तत्कालीन समाज यत्र-तत्र स्पन्दित होता हुआ दिखाई पड़ जाता है और कुछ कवि तत्कालीन जड़ता को तोडऩे में समर्थ होते हैं। बिहारी, घनानंद और भूषण रीतिकाल के श्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण कवि हैं। बिहारी ने जहाँ शृंगारिक कविता के अनेक आयाम प्रस्तुत किये, वहीं नीति और भक्ति के भी अच्छे दोहे लिखे जो आज के जीवन को भी प्रभावित करते हैं। घनानंद ने रीतिकालीन कविता की रूढिय़ों का अतिक्रमण करते हुए हृदय की आवाज को अभिव्यक्ति दी और स्वच्छंद काव्यधारा प्रवाहित की। भूषण तत्कालीन पराधीनता से आहत थे और अपनी कविता के माध्यम से एक प्रकार की स्वाधीन चेतना को वाणी दे रहे थे। ये तीनों कवि अलग-अलग धाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमें विश्वास है कि यह संग्रह रीतिकालीन कविता को समझने में विद्यार्थियों और साहित्यप्रेमियों की मदद करेगा और उनका ज्ञानवर्धन करेगा।