Sant Mahatmaon Ke Durlabha Prasang (Part-1) / सन्त-महात्माओं के दुर्लभ प्रसंग (भाग-1)
Author
: S.N. Khandelwal
Language
: Hindi
Book Type
: General Book
Category
: Bio/Auto-Biographies - Spiritual Personalities
Publication Year
: 2016, 1st Edition
ISBN
: 9788189498801
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xii + 152 Pages; Size : Demy i.e. 22.5 X 14.5 Cm.

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सन्त महात्माओं के दुर्लभ प्रसंग (प्रथम भाग)
इस वर्तमान परिवेश में संत की संगति दुर्लभ हो चली है जिसे संत समझ कर उसकी संगति में गया, कुछ को छोड़कर उनके अतिरिक्त वे सब कुछ और ही निकले। जो असंत नहीं भी निकले, उन्होंने स्वार्थ-अर्थोपार्जनार्थ संत का आवरण बना रखा है। उनमें मन-वचन-कर्म की एकतानता ही नहीं है। तथापि मैं यह सब उनका दोष नहीं मानता। दोषारोपण अपना ही पुण्य क्षय करता है। हो सकता है यह मेरे आकलन का तथा दृष्टिकोण का दोष रहा हो। अत: यह निर्णय विद्वानों पर छोड़ता हूँ। 'गुणदोषमय विश्व कीन्ह करतार' इस समस्या से उबरने के लिए मैंने नि:संग होना ही उचित समझा। अर्थात् 'संगं सर्वात्मना त्याज्य।' अब यही मार्ग बचा था कि जो काल के प्रवाह में आज भी संत कहे जाते हैं तथा जो प्रचार और यश से दूर रहे हैं, साथ ही जिनकी स्मृति तक अब जनमानस से लुप्त होती जा रही है तथा जिनको आज तक देखा भी नहीं, तथापि जिनकी जीवनयात्रा के कुछ अंश को जानने से ही मैं स्वयं में अपूर्व श्रद्धा तथा भावस्रोत को उमड़ता पा रहा हूँ, उनके इतिवृत्त का संकलन तथा लेखन करना पूर्णत: सत्संग ही है। यह लेखन करने में यह स्पष्ट अनुभव किया कि सत्संग की जो आकांक्षा बहुत कुछ अतृप्त ही रह गयी थी, वह शून्यता अब पहले जैसी नहीं है। वास्तव में सत्पुरुषों का स्मरण पूर्णत: निर्दोष सत्संग ही है। इस लघु ग्रन्थ की प्रस्तुति के पश्चात् भी इस कड़ी को आगे बढ़ाने की प्रेरणा अन्तर्यामी प्रभु से प्राप्त हो रही है। जैसी हरि इच्छा! 'स्मरण' भी नवधा भक्ति का प्रमुख अंग है। यह स्मरण के मनके एक लघु ग्रन्थमाला के रूप में सूत्रबद्ध हों तथा वह माला मैं जनता जनार्दन हेतु प्रस्तुत करूँ, यही कामना करता हूँ। यह महान साधकों का संक्षिप्त जीवनवृत्त है। यह सन्त प्रसंग अनन्त है। इसे पूर्ण रूप से कोई भी कह नहीं सकता। यहाँ यथामति यतकिंचित प्रकाश प्रक्षेपण का प्रयास मात्र कर सका हूँ। द्वितीयत: यह कहना है कि सन्तों का जीवनवृत्त अलौकिक तथा सामान्यत: अविश्वसनीय प्रतीत होने वाली घटनाओं से भरा है। तार्किक तथा भौतिक मान्यतायुक्त बुद्धिवालों के लिये यह कपोल कल्पना तथा उपहास का विषय है। उनके लिये मुझे कुछ नहीं कहना है, क्योंकि संविधान ने विचार स्वातंत्र्य का अधिकार सबको दिया है। तथापि जो सत्पथ पर चलने वाले श्रद्दाभक्ति समन्वित पवित्रात्मा हैं, उनके लिये यह सब अनहोनी नहीं है। यथार्थ है। अत: अविश्वासी अविश्वास करें, उपहास करें, विश्वासी इससे अनुप्राणित रहें, दोनों मेरे लिए स्वागदार्ह हैं। वन्दनीय है। 'जाकी रही भावना जैसी'--एस. एन. खण्डेलवाल