Ghanananda Granthawali [PB] / घनआनन्द ग्रन्थावली
Author
: Vishwanath Prasad Mishra
  Rajkumar Upadhyay Mani
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Poetical Works / Ghazal etc.
Publication Year
: 2016
ISBN
: 9789351461357
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: xxxvi + 602pages; Append; Biblio; Size : 21.5 x 14

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घनआनन्द रीतिकाव्य धारा की आत्मा हैं और सुजान घनआनन्द के काव्य की आत्मा है। घनआनन्द के श्वेताभ-अमिय काव्य को पाठक पीकर जी उठता है, बिहारी की रतनार-मद के काव्य-प्रवाह में झुक-झुककर गिर जाता है परन्तु केशव के श्यामल-हलाहल काव्य में मर जाता है। रीतिकाव्य के तीन रस तीन धाराओं में प्रवहमान दिखाई देते हैं उनमें घनआनन्द ने समर्पित होकर जीया है, राग-विराग के साँचे को मौनमधि पुकार से गढ़ा है। अत: घनआनन्द का काव्य प्रेम-रसायन है जो सुजान-सुधारस से पगी हुई है। घनआनन्द के काव्य में 'सुजान' ही केन्द्र-बिन्दु है जिसकी परिधि में उनका पूरा काव्य-संसार परिबृन्ïिहत है। ग्रन्थों में लगभग ३०० बार सुजान या सुजान राय शब्द प्रयोग में आया है किन्तु व्यापक अर्थ में श्रीकृष्ण जीवन से सम्बन्धित प्रसंगों में हम 'सुजान' के रूप में श्रीकृष्ण का अभिप्राय ग्रहण कर सकते हैं। हिन्दी साहित्य में 'प्रेम का पीर' दो ही कवियों को बताया जाता है। एक भक्तिकालीन मलिक मुहम्मद जायसी तथा दूसरे रीतिकालीन प्रेम रस-सिद्ध कवि घनआनन्द। इनके इस प्रेम के दो स्वरूप हैं—एक लौकिक प्रेमाभिव्यक्ति सुजान के प्रति जो शृंगारिक भाव रूप में उद्भासित है तथा दूसरा अलौकिक प्रेमाभिव्यंजना सु-ज्ञान अर्थात ईष्टदेव-आराधक श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति-प्रपन्ना।