Abhigyan Shakuntalam : Chaturthoankah (Mahakavi Kalidasvirchitam) / अभिज्ञानशाकुन्तलम् : चतुर्थोऽङ्कï: (महाकवि कालिदास विरचितम्)
Author
: Shiv Shankar Gupta
Language
: Hindi
Book Type
: Text Book
Category
: Sanskrit Literature
Publication Year
: 2016
ISBN
: 9789351461463
Binding Type
: Paper Back
Bibliography
: 48 Pages; Size : Demy i.e. 21.5 x 13.5 Cm.

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लोकगीत वस्तुत: आत्मा के स्वर हैं, जो अँधेरी घाटियों में भी फूँटें तो हजार-हजार किरण बनकर बिखर जायें। लोकसंगीत अपनी ही साधना एवं महिमा से गौरवान्वित है। मन की विभिन्न स्थितियों ने, इनमें भावों के ताने-बाने बुने हैं। स्त्री-पुरुषों ने थमकर इनकी शीतल छाँह में अपनी थकान मिटायी है। इनकी रसवन्ती ध्वनि में बालक सोये हैं और जवानों ने प्रेम की मस्ती पायी है। चाहे शहनाई में डूबे विवाह के गीत हों, करुणा में भींगे बेटी की विदाई के गीत हों, उल्लास जगाते पर्व-त्योहार के गीत हों, फागुन की मस्ती में ताल देते होली और चैती के गीत हों, या रसीले कजरी गीत हों, अवसर के अनुसार ये गीत अपने हर रंग, हर रस में सुनने वालों को सराबोर कर देते हैं। कजरी मूलत: लोकनारी का पावसकालीन आभरण है। जिस तरह वसन्त के आते ही लोकहृदय फाग के संगों में सराबोर हो उठता है, चैत के लगते ही ग्रामीण अंचलों में चैरी के स्वर गूँज उठते हैं, उसी प्रकार सावन आते ही आकाश पर काले कजरारे सघन मेघों, चकमती दामिनी और रिमझिम बरसते पानी के बीच कजरी के बोल लाकहृदय को आलोडि़त कर देते हैं। झूलों पर झूलती ग्रामीण युवतियों की मधुर स्वरलहरी वातावरण को मादक बना देती है और सारे वातावरण में कजरी के गीत झूले की पेंगों के साथ तैरने लगते है। पुस्तक तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में कजरी का उद्भव, विकास, प्रकार, भाव-पक्ष, कला-पक्ष, स्थानीयता, गायन-शैली आदि वॢणत हैं। दूसरे खण्ड में कुछ चुने हुए कजरी गीत और तीसरे खण्ड में कजरी की प्रचलित धुनों की स्वरलिपियाँ दी गई हैं।