Ek Vishwa : Ek Sanskriti (One World : One Culture) / एक विश्व : एक संस्कृति

Author
: Vrajvallabha Dwivedi
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: History, Art & Culture
Publication Year
: 2003
ISBN
: 8171243347
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xvi + 200 Pages, Index, Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.
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आज के विश्व में परस्परविरोधी और अविरोधी अनेक धर्म प्रचलित हैं। इनमें धर्मवायु की प्रधानता रहते हुए भी आध्यात्मिक तत्त्वों की कमी नहीं है। कर्मकाण्ड के धरातल पर इनमें परस्पर विरोध दिखाई देने पर भी इनकी आध्यात्मिक दृष्टिï में बहुत समानता है। इसके आधार पर इनमें परस्पर सामंजस्य बैठाया जा सकता है। भारत में ऐसा हुआ भी है। प्रसिद्ध भारतीय ज्योर्तिविद वराहमिहिर ने आज से डेढ़ हजार वर्ष पूर्व एक ही श्लोक में इसका अच्छा समाधान दिया है कि व्यक्ति जिस किसी भी देवता की उपासना, उस देवता के द्वारा बताई गई पद्धति से ही करें। पंचायतन और षडायतन पद्धति से भारत में तो यह भी हुआ है कि व्यक्ति अपने इष्टïदेव की प्रधान रूप से उपासना करता हुआ, अन्य सम्प्रदायों के देवताओं की उपासना भी उन-उन शास्त्रों में प्रदर्शित विधि से कर सकता है। आज के विश्व में अन्य धर्मों के साथ इस्लाम और ख्रीस्ट धर्म का सामंजस्य अभी नहीं बैठ पाया है। वराहमिहिर की पद्धति से इनमें परस्पर सौहार्द बने, आज यह एक विश्व की कल्पना की प्रथम आवश्यकता है। अध्यात्म भीतर झाँकता है, वह बाहर नहीं देखता। इसके विपरीत आधुनिक भौतिक विज्ञान केवल बाहरी दुनिया देखता है, मनुष्य की आन्तरिक प्रवृत्तियों पर वह ध्यान नहीं देता। मनोविज्ञान के आधार पर अध्यात्म में और भौतिक विज्ञान में भी परस्पर सामंजस्य स्थापित हो, इस विषय पर पूरे विश्व के विज्ञ को विचार करना चाहिए। तभी विज्ञान द्वारा पैदा की गई अणुबम की विभीषिका से मानवजाति मुक्त हो सकेगी। अध्यात्म और विज्ञान के इस तरह के समन्वय के बाद ही एक संस्कृति का निर्माण सम्भव हो सकता है। धर्माध्यक्षों के मायाजाल से मुक्त भारतीय प्रशासन एक समग्र भारतीय संस्कृति के माध्यम से धार्मिक आतंकवाद से मुक्त हो सकता है, जिससे भारत में बसनेवाले सभी धर्मों के अनुयायी परस्पर अविरोधी अपने-अपने धार्मिक कार्यकलापों को चलाते हुए भी सभी धर्मों के प्रति समादर की भावना को जगा सकें।
विषय-क्रम : प्रकाशकीय अभिमत, प्रस्तावना, साधक-बाधक तत्त्व, सभ्यता, संस्कृति और साहित्य, धर्मों और संस्कृतियों का संघर्ष, विलगाव की प्रवृत्ति, साम्प्रदायिकता, सेमेटिक धर्म, सांस्कृतिक अवसाद, चतुष्कोणीय संघर्ष, यह आत्मघात क्यों? प्रगतिशील और प्रतिगामी, भारतीय मुसलमान किधर, भारत और चीन, दुराग्रह (असहिष्णुता) से मुक्ति, धर्माध्यक्षों की मनोवृत्ति, धर्म और संस्कृति, चार पुरुषार्थ, धर्म (आध्यात्मिक), नैतिकता, धर्म (कर्मकाण्डीय), हिन्दू (सनातन) धर्म, सर्वधर्म-समादार, धर्म-परिवर्तन (धर्मान्तरण), धर्म-निरपेक्षता (सेक्युलरिज्म), द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, सहिष्णुता और समन्वय, धर्म और संस्कृति का अन्तर, एक राष्ट', एक संस्कृति, एक भाषा, संस्कृत भाषा और भारतीय संस्कृति, तन्त्रागमशास्त्र और भारतीय संस्कृति, भारतीय संस्कृति का समग्र स्वरूप, निगमागम विवेचन (भावात्मक एकता), दर्शन, नूतन दृष्टिï का उन्मेष, अभ्युदय और नि:श्रेयस (सामाजिक मूल्यांकन), भोग और मोक्ष, बन्ध और मोक्ष, संसार और निर्वाण, मोक्ष, सां?यदर्शन, योगदर्शन एवं योगशास्त्र, तन्त्रागमीय दर्शन, आगम साहित्य, तन्त्रागमीय वाङ्मय, सिद्ध और सहजयान, भक्ति आन्दोलन, सन्त कबीर के प्रेरक तत्त्व, तन्त्रागमशास्त्र की सामयिक उपयोगिता, विश्वसंस्कृति, समता-दृष्टि', विश्वाहन्ता, विश्वसंस्कृति, विश्वसंस्कृति का क्रमिक विकास, विश्वदृष्टि, विश्वव्यवहार, पूर्णयोग, अखण्ड महायोग, सामूहिक नेतृत्व, संभूय समुत्थान, उपसंहार, विषयानुक्रमणी।