Rag Jigyansa / राग जिज्ञासा (मोक्षमूलक सङ्गीत का आध्यात्मिक विवेचन)
					
					
					Author
						: Devendra Nath Shukla
						Language
						: Hindi
						Book Type
						: Reference Book
						Category
						: Music, Dance, Natyashastra etc.
						
						Publication Year
						: 2001
						ISBN
						: 9AGRJH
						Binding Type
						: Hard Bound
						Bibliography
						: xx + 136 + 32 Plates, Biblio., Append., Size : Demy i.e. 22.5 x 14.5 Cm.
						MRP ₹ 300
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						''उत्तर में 'राग, रागिनी, पुत्र, भार्या' ऐसी राग रचना का वर्णन करने वाले ग्रन्थों पर भी हमने तोड़ी-बहुत टीका की थी। यह टीका हमने किसी दोष दृष्टिï से नहीं की। अपितु हमारे कहने का आशय इतना ही था, कि वह रचना उस काल में कौन से तत्वों पर की गई थी, इसका स्पष्टïीकरण ग्रन्थों में नहीं मिलता। पुन: आज के रागस्वरूप ग्रन्थों के रागस्वरूपों से सर्वथा भिन्न हो जाने के कारण वह प्राचीन रचना आज असुविधाजनक होगी।'—भातखण्डे संगीतशास्त्र, भाग 4, पृष्ठï 729, ''यह सब हमारे जीवन में तो कैसे होगा? प्रत्येक पीढ़ी को इस पवित्र कार्य में यथाशक्ति, यथामति सहयोग देना चाहिए, ऐसा ईश्वरीय सङ्कïेत है।—भातखण्डे संगीतशास्त्र, भाग 4, पृष्ठï 661, पं० विष्णुनारायण भातखण्डे द्वारा किया गया पीढिय़ों का आह्वïान व्यर्थ नहीं गया। आह्वïान से प्रेरित आचार्य बृहस्पति ने महॢष भरत द्वारा निद्रिष्टï श्रुति, स्वर, ग्राम और मूच्र्छना पद्धति का सप्रयोग स्पष्टï करके सङ्गïीतजगत् की अविस्मरणीय सेवा की। अत: पूर्व, विदेशी सङ्गïीतज्ञों के मत से प्रभावित भारतीयों ने भी भरतोक्त, निॢववाद मूच्र्छना-पद्धति को जटिल, दुर्बोध तथा अप्रयोज्य कहकर इससे पिण्ड छुड़ा लिया था। आचार्य बृहस्पति तथा ठा० जयदेव ङ्क्षसह के समकालीन अनेक भारतीय, अभारतीय विद्वानों ने अपनी रुचि, ज्ञान और साधन सीमा के अनुसार भारतीय संङ्गïीत की मूल्यवान् सेवा की। निस्सन्देह बीसवीं शती भारतीय सङ्गïीत के सर्वतोमुखी विकास की शती है। शास्त्र, सिद्धान्त, तदनुयायी क्रियापक्ष, पर्याप्त परिष्कृत रूप में उपस्थित किये गये।
अनुक्रम : संवाद, 1. नादब्रह्मï, 2. सा विद्या या विमुक्तये, 3. अतीत के सन्दर्भ, 4. ध्रुवपद, पद एवं $खयाल, 5. राग के विविध पक्ष, 6. वर्तमान सङ्गïीतशास्त्र और लोकधुन, 7. लय ताल एवं मात्रा, 8. ताल वाद्य और ध्वनि, 9. घराना, 10. स्वर, रस एवं राग, 11. वर्तमान रागनियम, 12. अप्रचलित राग, 13. नवनिॢमत राग, 14. राग, समय और मुद्रित सङ्गïीत, 15. चित्र-चर्चा, 16. साधकों के अनुभव, अनुवित्ति, परिशिष्टï, सन्दॢभका।