Madhyayugin Kavya Pratibhayen / मध्ययुगीन काव्य प्रतिभाएँ
Author
: Ramkali Saraf
Language
: Hindi
Book Type
: Reference Book
Category
: Hindi Literary Criticism / History / Essays
Publication Year
: 2003
ISBN
: 8171242613
Binding Type
: Hard Bound
Bibliography
: xviii + 186 Pages, Size : Demy i.e. 22 x 13 Cm.

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मध्ययुग में भक्ति और रीति दो काव्यधाराएँ समानरूप से प्रवाहित हैं। दोनों की दो दिशाएँ हैं। भक्त कवियों में कबीर, जायसी, सूर, मीरा, तुलसी ने अपनी रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक विरोध और समन्वय को अभिव्यक्ति किया। इन कवियों ने ब्रह्मïलीन आनन्दावस्था को प्रेम के साथ जोड़कर देखा। जीवन की सच्ची परिस्थितियों को सीधे-सीधे आत्मसात् कर माॢमक अंकन करना भक्त कवियों की विशेषता है। रीतिकालीन काव्य परम्परा हिन्दीभाषी प्रदेश में सामन्तवर्ग की विशिष्टï सांस्कृतिक परम्परा है। तुलसीदास के समय से ही एक नये ढंग का जातीय सांस्कृतिक विचलन उपस्थित होने लगा था। इस प्रकार भक्तिकाल से ही रीतियुग के बीज सूत्र मिलने लगे थे। 'राधा कन्हाई सुमिरनÓ के बहाने भक्ति ने रीति का रूप ग्रहण कर लिया। केशव, बिहारी, मत्तिराम, भूषण, देव, पद्माकर, घनानन्द, द्विजदेव, भारतेन्दु, रत्नाकर रीति परम्परा के प्रमुख कवि हैं, जिन्होंने काव्यशास्त्रीय लक्षण ग्रन्थों में आबद्ध हो काव्य-कौशल अभिव्यक्त किया। इनके काव्य में उक्ति भंगिमा, अतिरंजित चमत्कारयुक्त आलंकारिक चित्रण है। भक्ति और रीति के प्रमुख कवियों और उनके काव्य का अध्ययन इस पुस्तक की विशेषता है। साहित्य के अध्येताओं के लिए महत्त्वपूर्ण। विषय-सूची : भूमिका, 1. कबीर साहित्य का समाज-दर्शन, 2. तुलसीदास : गति और प्रगति, 3. सूरकाव्य का सांस्कृतिक बोध, 4. जायसी की प्रेम साधना, 5. रीतिकालीन परिवेश और प्रवृत्तियाँ, 6. केशव : काव्य-प्रतिभा और पाण्डित्य, 7. बिहारी : भाषा की समास शक्ति और कल्पना की समाहार शक्ति, 8. मतिराम और उनकी भाव सरसता, 9. भूषण : पौरुष और पराक्रम के प्रतीक, 10. देव : विलक्षण पाण्डित्य, 11. भावमूॢत पद्माकर, 12. घनानन्द : साक्षात् रसमूॢत, 13. द्विजदेव के काव्य में रस और ऋतु, 14. ब्रजभाषा काव्य और भारतेन्दु, 15. ब्रजभाषा काव्य-परम्परा के अन्तिम प्रौढ़ कवि : रत्नाकर।