Kala Guru Kedar Sharma Ke Vyangya Chitron Main Kashi / कला गुरु केदार शर्मा के व्यंग्य-चित्रों मे काशी
					
					
					Author
						: Dhirendra Nath Singh
						Language
						: Hindi
						Book Type
						: General Book
						Category
						: Benares / Kashi / Varanasi / Ganga
						
						Publication Year
						: 2005
						ISBN
						: 8171243959
						Binding Type
						: Hard Bound
						Bibliography
						: xii + 300 Pages, Size : Royal Octavo i.e. 25 x 16.5 Cm
						MRP ₹ 300
Discount 20%
Offer Price ₹ 240
						'बनारसी' न तो प्राचीन काशी निवासी को कहा जा सकता है, न अर्वाचीन वाराणसीवासी को। बनारसी बनारस का वह जीव है जो काशी की प्राचीन हवा खा चुका हो। मुगलों की चढ़ाई-उतराई देखा हो। नवाबों की नवाबी ऐयाशी की कहानी पढ़ी हो। आशिक मिजाज हो, अंग्रेजों की गुलामी के दिन काट चुका हो। वैसे बनारसी आज के बनारस में कम होते जा रहे हैं। सच्चे बनारसी केवल वे ही हैं, जो संस्कृत-हिन्दी में 'ओना मासी धम, बाप पढ़े न हम' हो। जिसके अरबी फारसी 'अलिफ, बे हौवाम माँ चील्ह बाप कौवा' हो। अंग्रजी ए-बी-सी-डी जिन्हें 'काला अक्षर भैंस' दिखाई देता हो। जो टीम-टामवाले वस्त्र धारण करने वाला न हो। केवल एक अगोछा पहनकर दूसरे को कन्धे पर रख लेता हो और चौक बाजार, नगर में इसी वेष-भूषा में कहीं भी घूम-फिर सकता हो। तीज त्यौहार के दिन जो घुटनों तक धोती, चुस्त गंजी पर मलमली कुरता धारण करता हो और कन्धों पर एक अंगोछा रख लेता हो। किसी शौकीन के दूसरे कन्धे पर जिसे भगवान ने दिया है - मद्रासी सेल्हा अथवा नागपुरी दुपट्टïा भी हो सकता है। गर्मी के दिनों में एक बहुत छोटा ताड़ का पंखा रखता हो। जिसके हाथ में बाँस की एक सुबुक पोरदार छड़ी शोभायमान हो। मुख में पान के बीड़े जमें हों। शरीर में जोम हो। दिमाग में बूटी की तरंग हो। आँखों में तरंगायित लाल डोरियाँ उभर आयी हों। जिनके ललाट पर कंकड़ का श्वेत और, भस्म का त्रिपुण्ड्र, चन्दन का गोल टीका या महाबीरी  चमक रहा हो। जो जरा झुककर चलता हो बात-बात में 'सरवा' आदि कुसंस्कृत शब्दों का तकियाकलाम लगाता हो। शास्त्रीय ज्ञान का प्रकाण्ड पण्डित हो पर साधारण और व्यावहारिक ज्ञान में कोरा हो। जो नवीनता करता हो, पुरानी बातों और विचारों को जो वेदवाक्य समझता हो, जो अपने धार्मिक  ढकोसले की धाक जमाता हो, जिसकी विवेक-बुद्धि संकीर्ण हो, तुनुक-मिजाज हो, नाक लगाता हो, नाक पर मक्खी बैठ जाने पर नाक को ही दोषी मानता हो और स्वामी करपात्रीजी की तरह अपनी नाक काट फेंकने का दावा रखता हो वही पक्का और सहज बनारसी है।